MVA में “मैं” ज़्यादा, “हम” कम? उद्धव बोले—सीट नहीं, हार भी बंटती है

भोजराज नावानी
भोजराज नावानी

ठाकरे ने स्पष्ट किया कि लोकसभा चुनावों में पार्टी ने जिन सीटों पर जीत का इतिहास बनाया था, वहां भी उन्हें समझौता करना पड़ा। लेकिन विधानसभा चुनाव में यह ‘समझौता’ राजनीति नहीं, आत्मघात साबित हुआ।

“जहां हम पहले जीत चुके थे, वहां भी दूसरों को सीट देकर जनता के मन में गलत मैसेज गया – कि हम खुद कन्फ्यूज़ हैं।”

रियायतों की रेस में MVA को खुद को ही हराना पड़ा!

2024 की चुनावी रैलियों में MVA के साथी दलों ने एक-दूसरे से ज्यादा रियायतों की घोषणाएं कीं, जिससे जनता समझ ही नहीं पाई कि असली प्लान क्या है?

उद्धव बोले: “रियायत की स्पर्धा नहीं, नीतियों की एकता चाहिए। हर कोई अपना घोषणापत्र खुद लेकर आ रहा था – मानो गठबंधन WhatsApp ग्रुप ही न हो।”

अगर यही चलता रहा, तो गठबंधन की “Alt + F4” तय!

उद्धव ठाकरे का दो टूक- “अगर वही पुरानी गलतियां दोहराईं गईं — सीट बंटवारे में देरी, उम्मीदवार चयन में टालमटोल, और गठबंधन में ‘मैं’ ज़्यादा — तो इस साथ का कोई मतलब नहीं बचेगा।”

यानी अब गठबंधन का टेस्ट है — सीट बंटवारे का नहीं, भरोसे का।

तड़का:

“MVA में सीट तय होने से पहले Ego तय हो जाता है!”

“गठबंधन की मीटिंग अब Zoom से ज्यादा Doom जैसी लगती है!”

“गठबंधन की राजनीति में जीतने वाले नहीं, झगड़ने वाले आगे निकलते हैं!”

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